सफ़र है धूप का इसमें क़याम थोड़ी है…

सफ़र है धूप का इसमें क़याम थोड़ी है
बला है इश्क़, ये बच्चो का काम थोड़ी है,

किसी को वस्ल है भारी कोई फ़िराक में ख़ुश
दिलो के खेल में कोई निज़ाम थोड़ी है,

अभी भी दिल में धड़कता है नाम उसका ही
अभी भी दिल से मुहब्बत तमाम थोड़ी है,

जो अहल ए इश्क़ है मंज़िल का गम नहीं करते
ये ख़ास लोगो का रस्ता है, आम थोड़ी है,

बढ़ा जो दर्द तो कागज़ पे ख़ुद उतर आया
समझ के सोच के लिखा कलाम थोड़ी है,

तुम्हारी याद जो आई तो आ गए मिलने
वरना तुमसे हमें कोई काम थोड़ी है,

हम अपने मन की करेंगे भला लगे कि बुरा
हमारा दिल है ये तुम्हारा गुलाम थोड़ी है..!!

~अलका मिश्रा

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