अब ये होगा शायद अपनी आग में खुद जल जाएँगे
तुम से दूर बहुत रह कर भी क्या पाया क्या पाएँगे ?
दुःख भी सच्चे सुख भी सच्चे फिर भी तेरी चाहत में
हम ने कितने धोखे खाए कितने धोखे खाएँगे ?
अक्ल पे हमको नाज़ बहुत था लेकिन ये कब सोचा था
इश्क के हाथों ये भी होगा, लोग हमें समझाएँगे,
कल के दुःख भी कौन से बाकी आज के दुःख भी कई दिनों के
जैसे दिन पहले कटते थे, ये दिन भी कट जाएँगे,
हम से आबला पा जब तनहा, घबराएँगे सहरा में
रास्ते सब तेरे ही घर की जानिब को मुड़ जाएँगे,
आँखों से ओझल होना क्या, दिल से ओझल होना है
मुझसे छुट कर भी अहले गम, क्या तुझ से छुट पाएँगे ??