दुआ में हाथ जब मेरे उठे, परवान लगते है
ये पत्थर भी न जाने क्यूँ मुझे इन्सान लगते है,
कही कोई घना गम है जो हँसते आप बेज़ा से
छिपाए दिल में कोई दर्द का तूफ़ान लगते है,
करे दिन रात मज़दूरी नहीं घर बार फिर कोई
ये इंसा क्यूँ मुझे एक दर्द की मुस्कान लगते है,
ये बिंदी, चूड़ियाँ, पायल, बिछुए, बालियाँ, कँगन
ये पहचान है इस मुल्क की, ये हिंदुस्तान लगते है,
कभी हँसती थी खुशियाँ बन के बहार दिल के गुलशन में
जुदा जब से हुए आबाद घर भी वीरान लगते है,
बना रिश्ता नहीं कोई हमारे बीच तो क्या हुआ ?
अभी मेरी मुहब्बत से वो ज़रा अंजान लगते है..!!