हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले…
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले, डरे क्यूँ मेरा …
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले, डरे क्यूँ मेरा …
बाग़ पा कर ख़फ़क़ानी ये डराता है मुझे साया-ए-शाख़-ए-गुल अफ़ई नज़र आता है मुझे, जौहर-ए-तेग़ ब-सर-चश्म-ए-दीगर मालूम हूँ मैं वो सब्ज़ा …
क़यामत है कि सुन लैला का दश्त-ए-क़ैस में आना तअ’ज्जुब से वो बोला यूँ भी होता है ज़माने में, दिल-ए-नाज़ुक पे …
तुम जानो तुम को ग़ैर से जो रस्म-ओ-राह हो मुझ को भी पूछते रहो तो क्या गुनाह हो ? बचते नहीं …
नहीं कि मुझ को क़यामत का ए’तिक़ाद नहीं शब-ए-फ़िराक़ से रोज़-ए-जज़ा ज़ियाद नहीं, कोई कहे कि शब-ए-मह में क्या बुराई है …
नफ़स न अंजुमन-ए-आरज़ू से बाहर खींच अगर शराब नहीं इंतिज़ार-ए-साग़र खींच, कमाल-ए-गर्मी-ए-सई-ए-तलाश-ए-दीद न पूछ ब-रंग-ए-ख़ार मिरे आइने से जौहर खींच, तुझे …
न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो …