ग़म का मौसम बीत गया सो रोना क्या ?

ग़म का मौसम बीत गया सो रोना क्या ?
कल के ग़म को आज के दिन में बोना क्या ?

ठीक है हम एक दूसरे के महबूब नहीं
लेकिन मेरे दोस्त तो अब भी होना क्या ?

और बहुत से काम पड़े हैं करने के
अश्कों के सत रंगे हार पिरोना क्या ?

जिस को मेरी हालत का एहसास नहीं
उसको दिल का हाल सुना कर रोना क्या ?

बेशक सारी रात कटी है आँखों में
अब उजियारा फैल गया तो सोना क्या ?

तुम ने हँसते हँसते नाता तोड़ लिया
लेकिन सच सच बतलाओ ख़ुश होना क्या ?

~अफ़ज़ाल फ़िरदौस

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